गुरुवार, 5 मई 2011

अदा-ए-इश्क कहाँ से लाये शराब

अदा-ए-इश्क कहाँ से लाये शराब,
तेरे हुस्न से पार कहाँ से पाए शराब.


गम-ओ-रंज हज़ार हों पीने के,
जो आँखों से पिला दे,
वो हुस्न-ए-ताब कहाँ से लाये शराब,


महक जाती हैं महफिलें शराब के छलक जाने से,
जो शज़र-ओ-शहर महका दे,
वो महक-ए-खास कहाँ से लाये शराब,


चंद दिल तो टूट जाते है, छूटने से दामन के,
हज़ार दिलों को जो पल में खाक कर दे,
वो अदा-ए-शोखियत कहाँ से लाये शराब,


पल दो पल का तो नशा हर एक का है अपना ही,
गम-ए-हयात बन कर जो रगों में दौड़ जाये,
वो गम बेजार कहाँ से लाये शराब,






अंशुमन

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