गुरुवार, 5 मई 2011

तुम भी अब थोडा मुस्कुरा लो

तुम भी अब थोडा मुस्कुरा लो,
ले के आया हूँ मै उधार में कुछ खुशियाँ


कुछ तुम रख लो,
और चिपका लेना इन्हें ,अपने लटके मुह पर 
जब निकलो तुम मेरे इस हवामहल से,
जिसकी छत , एक दीवार , और खिड़की की चौखट 
चौराहे पे बैठी है इन खुशियों की खातिर 


और ठीक उस  नुक्कड़ के सामने 
जब तुम्हे कुछ दहकती आँखे देखेंगी 
तो बिना सोचे मुस्कुरा देना 
और निकल जाना उसी मस्ती में ,
जैसे अक्सर तुम निकल जाते हो , 
अपनी दिन की कमायी ठेके पर रख कर ,


तुम भी अब थोडा मुस्कुरा लो,
ले के आया हूँ मै उधार में कुछ खुशियाँ


अंशुमन

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