गुरुवार, 5 मई 2011

पल दो पल का है सफ़र, पल दो पल की है बात ये

पल दो पल का है सफ़र, पल दो पल की है बात ये
एक मुलाकात की खातिर, हज़ार बहानों की बात है ये,


जिन पलों में मिले थे तुमसे, उन पलों का क्या कसूर
वक्त की साख से छूट कर, ठहर गए जो पल,
उन पलों की बात है ये,


हज़ार ख्वाइशें सिमट आयें , कभी एक पल में सो क्या,
कायनात बिखर जाये जब दिलों की, उन पलों की आग है ये,


बिखरते रिश्तों से जब छूटे दामन, तो वक्त की किस अदा का कसूर,
जब अपनी ही रफ़्तार कम हो जाये, टूटते उन रिश्तों की रिवाज है ये,


मै न रहूँगा कल तलक ये ग़ज़ल गुनगुनाने के लिए सो क्या,
जिसकी आहट से दिल धड़क जाये , उन दिलों के जज्बात है ये


अंशुमन

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