गुरुवार, 5 मई 2011

कुछ पंक्तियाँ मेरी कविता "प्रिया" से

शब्द ( रूप), संवेदना (प्यार) से निर्मित ,
तुम इस जीवन का अलंकार प्रिये,
मै शब्द , संवेदना से अपरिचित,
तुम मेरे अहं का मान प्रिये,

तुम वसंत के प्रातः की स्वर्ण बेला सी,
मै ज्येष्ठ का दिवा-अवसान यहाँ,
मै पवन का एक झोंका हल्का,
तुम फूलों का श्रींगार प्रिये,

तुम शब्द शब्द सी निछल हो ,
मै भावों सा कुछ नरम गरम,
मै प्राण आहुति से प्रेम सृजित करूँ,
तुम बन जाओ इसका मान प्रिये,

मै प्रतिपल , प्रतिछण जर को पाता,
तुम निखर के आ जाती हो,
शब्द संत्वाना लिए अधरों पे,
हर जाती हो हर विकार प्रिये,

मै एक सीधा सा प्रेमी,
मानता था पुनर्जन्म का आभार यहाँ,
हो प्राणों का अब व्यापार जगत में,
तब क्यूँ जाऊ उस पार प्रिये

2 टिप्पणियाँ:

shephali ने कहा…

बहत सुन्दर अभिव्यक्ति

vidya ने कहा…

तरुण बहुत ही खूबसूरत कविता है....नाज़ुक से एहसास से भरी...ऐसे ही लिखते रहो.

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