बुधवार, 14 सितंबर 2011

साँस, रिश्ते, एहसास

साँसे
भले ही तोड़ सकती है,
रिश्तों को
कांच के मानिंद,
मगर ,
वक्त लगता है,
सदियों को ,
एहसासों को मिटाने में

11 टिप्पणियाँ:

नीरज द्विवेदी ने कहा…

बहुत सुन्दर बात कही आपने ..

वक्त लगता है,
सदियों को ,
एहसासों को मिटाने में...

My Blog: Life is Just a Life
.

shephali ने कहा…

बहुर सुन्दर

vidya ने कहा…

बहुत सुन्दर तरुण...

daanish ने कहा…

सच है ,,,
किसी भी अहसास को
मिट पाने के लिए
एक अरसा दरकार है ...

अच्छा काव्य .

vidya ने कहा…

bahut achhi aur sachhi baat kahi tarun...

S.N SHUKLA ने कहा…

सुन्दर रचना सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई .

मेरे ब्लॉग पर भी पधारें .

Anamikaghatak ने कहा…

bahut achchhi post

mridula pradhan ने कहा…

kya baat hai......

Pushpendra Vir Sahil पुष्पेन्द्र वीर साहिल ने कहा…

behtareen..!!

ramesh verma ने कहा…

वक़्त हर चीज़ मिटा देता है
कुछ हसीं लम्हों को भुला देता है
पर नहीं मिटा सकता आपकी याद
क्योकि वक़्त खुद ही आपकी याद दिला देता है !

UrbanMonk ने कहा…

उत्साह वर्धन के लिए आप सभी लोगों का तहे दिल से धन्यवाद .....

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