रविवार, 13 नवंबर 2011

हिसाब हो कोई,


दूरियों ने माँगा है, बीते वक्त का हिसाब हो कोई,
ये मुनकिन तो नहीं, हर एक सवाल का जवाब हो कोई,

बहते हुए अश्कों में पानी नहीं एक पोथी है,
अनछुई अनदिखी सवालों की कहानी है,
जो जुबान दे दे कोई, तो क़यामत होगी,
तुम ही सोचो , चुप रहता क्यों, जवाब हो कोई,

हादसों का शहर में आना जाना आम है,
यूँ सवालात बनके निकल जाना आम है,

जवाबों के लिये नहीं मिलते ढाई अक्षर

तुम सोच बैठे कि बात नहीं नकाब हो कोई,


ये भी आसान नहीं ,फासलों से फासले बनाकर चलना
हर किसी चोट पर मलहम लगा कर चलना

जख्म दिल का हो तो ,सौ दवा बेकार हुयी ,
जैसे
खाक में मस्त फ़कीर *
इस्तेजाब हो कोई,

**खुद ही जल रहा है ,जलाने निकला था जो शहर को कल,
ऐसी नफरतों को मिटोने के लिये बवाल हो कोई,
शर्म-ओ-हया की छाँव से दूर रहेगा कब तलक कोई,
अस्मिता मांगती है अब तो हिसाब हो कोई

* इस्तेजाब (Istejaab )
  astonishment, wonder