शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

आँखों में तैरता रंग लहू सा क्यूँ है

ये रंग रंगों से अलग सा क्यूँ है,
आँखों में तैरता रंग लहू सा क्यूँ है

एक शाम भोली सी गाँव जैसी पूछे है ,
सहर तेरे हिस्से में शहर सा क्यूँ है

शराफत के नये चेहरे अमीरी में नजर आये,
नक्श ए गुनहगारी गरीबी तेरा पहलू सा क्यूँ है

जरा मुडकर देखूं तो मोहब्बत के वो मंदिर थे,
पूछलूं उनसे दुवाओं में असर बम सा क्यूँ है

 दुवाओं के बटवारे में मेरा हिस्सा नहीं होता ,
अंशमजहब तेरा ढोंग से अलग सा क्यूँ है

3 टिप्पणियाँ:

somali ने कहा…

दुवाओं के बटवारे में मेरा हिस्सा नहीं होता ,
“अंश” मजहब तेरा ढोंग से अलग सा क्यूँ है
bahut sundar

बेनामी ने कहा…

acha likha hai aap ne

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुतद सुन्दर प्रस्तुति!

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