गुरुवार, 5 मई 2011

ब्रांड

रिश्ते नाते प्यार वफ़ा सब ,
अब ब्रांड तेरे हवाले है,
जिसको जैसे खुश रखना हो ,
बाज़ार में हज़ार निवाले है ,
ब्रांडो के इस आलम में,
मेरी पूरी महीने भर की कमाई,
बाज़ार-ए-ऊट के मुह में जीरे सी ,
लगती है मुझको तब ,
जब छोटी मुझसे कहती है,
लेनी है उसको एक नयी गुडिया,
जो की अब आती है ब्रांडो में,
अपने साथ लिये,
एक झूटी सी मुस्कान,
जो मेरे नमक चीनी को फीकी सी कर देती है
और दिखाने के लिये,
उसे बेहतर उसकी सहेलियों से ,
ब्रांड की गुडिया घर आ जाती है,
साथ लिए शेम्पू , तेल और
इतर की कुछ सीसियाँ
जो कि घर की आबो हवा को
अपनी रंगीनियत से महरूम ही रखती है
बाज़ार-ए-रंग के क्या कहने
फक्र होता है मुझे खुद पे
कि हम ग्लोबलाइज हो रहे है ,
भले ही घर में राशन के बर्तन
खुद से किया करते है बाते,
कि अगर शाहरुख ने किया होता
दाल-चावल का एडवरटाइस तो
आज हम भी भरे-भरे से होते


अंशुमन

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