शनिवार, 7 मई 2011

लोग

कुछ लोग,
जो मुझे दिखते है मुझ जैसे,
मेरी ही तरह हों,
ये मुंकिन भी है और नहीं भी,


लोग जो लगते थे मुझे अपने से,
अब कागजों में ही सिमट से गए है,
अब अपनों की भीड़ में भी,
हर शख्स अनजान सा मिलता है,


वो कुछ पुराने लोग,
जो रखते थे मुझे दिलों में,
शायद घर तंग थे उनके,
या फिर जगह काफी थी उनके दिलों में,


लोग जो अब मिलते है,
बड़ी हैसियत वाले,
तंग दिलों को संभाले रखते है ,
बड़े नाज़ से,
मेरी ही तरह हों,
ये मुंकिन है और नहीं भी,


वो कुछ पुराने लोग,
जो मेरी बातों को मान लेते थे हँस कर,
कि मेरी एक ख़ुशी से वास्ता था उनके दिलों का,
अब उन जैसे नजर नहीं आते लोग,


लोग जो अब मिलते है,
दिखते है मरने मारने में,
कि उनकी एक छोटी सी बात न दब जाये,
उनके अपनों की बातों के बीच में,


मेरे वो अपने पुराने लोग,
जो पोछ लेते थे मेरे आंसू,
अपने लहू की चादर से,
और जताते कुछ भी न थे,


लोग, अब जो कहते है मुझे अपना,
अनजान है मुझसे,
ठीक उसी तरह,
जैसे मै अनजान था तब,
उन पुराने लोगो की शख्सियत से,


वो मेरे अपने पुराने लोग,
जो सीचते थे,
मिटटी को लहू से,
की दूरियां मिटा देंगे वो एक दिन,


लोग, अब जो मिलते है,
बहाते है लहू इस कदर,
की जमाये रखनी है उन्हें,
सरहदों की लकीरें हर दिन,


लोग वो पुराने,
जिन्हें पागल या बनावटी कहते है,
आज के दौर के लोग,
मेरे दिल को लुभाते है वही,
पुराने  दौर के वो पुराने से लोग,


वो पुराने ही लोग,
लगते है मुझे अपने से,
जो अब किताबों से निकल कर,
बातें करते है मुझसे,
कि मदद करते है चुनने में,
राह जिन्दगी की,
कि मै भी जिन्दा रहूँ ,
उन्ही की तरह ,
किसी के जहन में,
बन के एक तस्वीर,
कुछ पुराने लोगो की




अंशुमन
३-५-२०११

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