सोमवार, 5 सितंबर 2011

तेरी मेरी प्रीत कान्हा


तेरी मेरी प्रीत कान्हा,
तेरा मेरा ये बंधन,
जलती है गोपियाँ मुझसे,
जलता है ये वृन्दावन,

तुम्ही कहो कान्हा ,
कैसे मै इनको समझा
ऊं ,
तू तो है सबका कान्हा,
ये मै किस को बतलाऊं,

मैया यशोदा भी अब, जलने लगी है,
कहती है मुझको बावली , लड़ने लगी है,
कैसे मिलू तुमसे अब मै कान्हा,
तेरे मेरे मिलने की मुश्किलें बड़ी हैं

तुम्ही सुझाओ कान्हा,
कैसे मिलूं मै तुमसे ,
कैसे सुनू मै बंसी की धुन,
कैसे करूँ मै प्राणों को वश में,

कान्हा आज मन ये बहुत ही उदास है,
तेरी मूरत की कान्हा, नयनो को प्यास है,
कान्हा अब भी जाओ, 
राधिका ये पुकारे
तेरी याद मे कान्हा, 
घड़ी घड़ी द्वार निहारे 

तेरे चरणों में कान्हा मेरा ये जीवन
आज मेरे तन मन का तुझको समर्पण
अब चुभने लगी हैं ये गलियाँ और ये वन 
जलती है गोपियाँ मुझसे,
जलता है ये वृन्दावन,

तेरी मेरी प्रीत कान्हा,
तेरा मेरा ये बंधन,
जलती है गोपियाँ मुझसे,
जलता है ये वृन्दावन,

2 टिप्पणियाँ:

shephali ने कहा…

bahut sundar kavita hai
man moh liya
raha krishan ke is prem ne

vidya ने कहा…

जप के राधे राधे...
कैसे खुद को साधें...
मन में तो कान्हा है...
आधे हम ,हम हैं...
और कान्हा हैं आधे....
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ये हमारी कविता तुम्हारी इस सुन्दर कविता को समर्पित..

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