सोमवार, 15 अगस्त 2011

कभी ठुकरा रहा कभी अपना रहा


कभी ठुकरा रहा  कभी अपना रहा
एक सख्स मुझको अपना बता रहा

बिखर के संभालना है सिरात-ए-जिंदगी
कोई है मुझको अमानतों में गिना रहा

संभल जरा संभल जरा जिंदगी दिलों का है कारवां,
महकदे का एक फरिश्ता है  मुझको ये समझा रहा

अजब से लोग मिलते है अजीब सा निजाम यहाँ,
गुनाहों में सना पड़ा  खुदा को दिया दिखा रहा

हर एक कसिस में दर्द अजाब सा
“अंश“ जिंदगी मजे में बता रहा

*सिरात-  path, road

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