मंगलवार, 13 सितंबर 2011

“ जिंदगी ”

मै और तुम,
मै और तुम , में उलझे रहे,
हम हो न सके,
और जिंदगी बीत गयी  ,
अजनबियों की तरह  

3 टिप्पणियाँ:

vidya ने कहा…

tarun..vary nice.
write more,god bless u.

shephali ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत
बधाई तरुण जी

daanish ने कहा…

वाह !!

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