शनिवार, 5 मार्च 2011

बात


बोल भी दो कि  अब वक़्त आया है
बात जो अधूरी थी
जो तुम्हे मुझसे कहनी थी 
जो ये आँखे कह ना सकी 
जो लब ब्यान कर ना सके 
बात वो बोल भी दो
कि अब वक़्त आया है..................

बन के हँसी तुम्हारे लबों पे बिखरी थी
ओढ़ में जिसके कुछ नमी सी थी 
तरन्नुम की उन धुनों को अब छेड़ भी दो
कि अब बोल भी दो, अब वक़्त आया है

बात एक नहीं दो चार होंगी 
कुछ तुम्हारे कुछ हमारे खयालातों के आकार की होंगी
मगर आज सुननी है मुझे वही
जो तुमने सीने में दबा के रखी हैं
बातें जो मुझसे छुपा के रखी हैं
बात वो बोल भी दो
कि अब वक़्त आया है 

1 टिप्पणियाँ:

Pushpendra Vir Sahil पुष्पेन्द्र वीर साहिल ने कहा…

बात एक नहीं दो चार होंगी.......
kya bat hai...

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