शनिवार, 5 मार्च 2011

मोड़ के उस पार


मोड़ के उस पार
जब खड़े थे तुम
तो मन में ख्याल आया
कि मिल लूं तुमसे
जैसे मिले थे हम
जब बात हमारे बीच कुछ भी ना थी 

ना ये फासले थे कदमो के 
ना लफ्जों में इतनी लड़खड़ाहट थी 
ना दिल में कसक थी बात करने की 
ना लबों पे नमी संग मुस्कराहट थी

माना की वक़्त की धार का असर है ये
जो फासले खड़े है आज दरमियान
बातें, जो हमने वक़्त पे छोड़ रखी थी
फासले आज उसी के है

मोड़ के उस पार
जब खड़े थे तुम 
तो मन में ख्याल आया
कि बात कर लूं तुमसे फिर से 
जैसे की थी
जब बात हमारे बीच  कुछ भी ना थी

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