शनिवार, 5 मार्च 2011

चेहरा


मैने देखा चिंता और प्यार ,
झुर्रियों की तह के पीछे,
डबडबाती हुयी आँखों में अजीब सी चमक,
और चेहरे पे एक खोखली सी हँसी,

मैले फटे हाथों की लकीरों को देखती हुयी आँखें,
जैसे अब भी कुछ होने का इन्तजार है,
फिर देखती हुयी पल्लू में पड़ी एक गांठ को,
जैसे जीवन भर की दस्तान उसमे हो,

कुछ यादों की पनाह में,
जैसे एक जिंदगी चल रही है ,
वर्तमान के खांचे में ,
अतीत की खिड़की खुल रही है ,

कुछ सोचते हुए आँखे भर आई उसकी,
जैसे सिलापट पे बिखरी ओस की कुछ बूंदे हो,
डबडबायी आँखों में अब दर्द है,
और चेहरे पे एक जानी पहचानी सी मुस्कान.......................

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