गर जिंदगी किताब होती,
तो पलटने तक की देर थी ,
नज़र के सामने एक अक्श होता धुंधला सा,
पलट जाये तो, जिन्दगी बदल जाये मेरी,
खुली आँखों से मुझे पड़ते हुए भी तुम,
शायद ही कभी समझ पाते मुझे,
पलटते पन्नो की आवाज के साथ , मेरी बात दब जाती,
ये जज्बात दब जाते, मेरी साँस दब जाती,
गर इतनी खुली बातें भी समझ न पाए तो ,
दिल की बातों को पूछते क्यों हो,
गर देखने से भी समझ ना पाओ तुम,
तो मुझे नुमाइश को कहते क्यों हो
अंशुमन
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